Saturday, November 17, 2018

संस्कारों का साक्षात करने पर होता है पुनर्जन्म का आभास : स्वामी संपूर्णानंद सरस्वती


By Samachar Digital News
Chandigarh 17th November:- जिस सुख की प्राप्ति में कम से कम साधन चाहिए वह सुख सबसे अच्छा है। संतोष प्राप्ति के बाद किसी भी वस्तु की जरूरत नहीं होती है। ध्यान का सुख लेने के लिए किसी भी भौतिक वस्तु की आवश्यकता नहीं होती है। इससे इसमें स्वयं, मन और परमात्मा की जरूरत है।  उपरोक्त शब्द आर्य समाज सेक्टर 7 बी  में आयोजित  वार्षिक उत्सव के दौरान स्वामी संपूर्णानंद सरस्वती जी ने प्रवचन के दौरान कहे। उन्होंने कहा कि हमारा मन, शरीर से बाहर नहीं जाता क्योंकि वह हमारे सूक्ष्म शरीर का हिस्सा है।  स्थूल शरीर की आयु थोड़ी है और सूक्ष्म शरीर की आयु 4 अरब 32 करोड़ वर्ष है। सूक्ष्म शरीर में 17 चीजें होती हैं। इसमें पांच ज्ञानेंद्रियांपांच कर्म इंद्रियां, पांच सूक्ष्म भूतमन  और बुद्धि  होती है।  यह कभी पीछा नहीं छोड़तीहमेशा साथ रहती हैं।  चित पर सारे कर्म प्रिंटेड होते हैं। यही साथ जाते हैं।  स्मृति के संस्कार  का जखीरा उसका चक्कर लगाता है। अपने संस्कारों का साक्षात करने पर पुनर्जन्म का आभास होता है।  संसार की अद्भुत चीज चित है।  आत्मा, मन और बुद्धि के जुड़ने पर आत्मा भोगता कहलाता है।  मस्तिष्क मन और चित का गोलक है। यह न्यूरॉन से बना है। एक न्यूरॉन 1000 से 1500 कनेक्शन बनाता है। औसत न्यूरॉन 80 अरब से 100 अरब तक होते हैं। 
कार्यक्रम के दौरान डॉ. जगदीश शास्त्री, आयुषी शास्त्री और डॉ. विरेंद्र अलंकार ने भी वेदों पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम के बीच-बीच में रामपाल आर्य और राजेश वर्मा ने मधुर वचनों से उपस्थित लोगों को आत्मविभोर कर दिया।

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