By Samachar Digital News
Yamunanagar 18th May:- पंजाब के मोहाली स्थित फोर्टिस अस्पताल ने नसों की कमजोरी व उनके फूलने की बीमारी के इलाज के लिए एक अति-आधुनिक विधि अपनाई है। इस संबंधी जानकारी देते हुए अस्पताल के नस रोग आप्रेशन विभाग के निर्देशक डा. रावुल जिंदल ने आज यहां संवाददाता सम्मेलन में बताया कि पहले इस बीमारी का इलाज कई दिन तक चलता था, लेकिन इस नई तकनीक के चलते यह इलाज कुछ घंटों में ही हो जाएगा। उन्होंने कहा कि इस तकनीक में डीआईओडीई, एनडीवाईएजी लेजर्स के अलावा रेडियो फिक्रवेंसी शामिल हैं, जिसका नाम मोका तकनीक है, मोका का मतलब है मेकेनिको केमीकल एब्लेशन ऑफ द वैरीकास वेन्स।
उन्होंने कहा कि अल्ट्रासाऊंड में मिले निर्देशन के मुताबिक नसों को पंक्चर करने तथा उसमें आई परेशानी को जलाकर खत्म करने की इस विधि ने मरीज को जल्दी तंदरूस्त होने का मौका दिया है। उन्होंने बताया कि यह विधि दर्द रहित व सुरक्षित है। उन्होंने बताया कि इसके तहत होने वाले आप्रेशन का कोई निशान बाकी नहीं रहता, क्योंकि इस तहत न कोई कट लगाना पड़ता है तथा न ही टांके। उन्होंने कहा कि इसके साथ शरीर के टिशूज का भी कम नुकसान होता है और यह उन लोगों के लिए ज्यादा लाभकारी है, जिनका खून पतला है। इसके अलावा शुगर के मरीज के साथ-साथ खून में इंफेक्शन रखने वाले अथवा आप्रेशन से डरने वाले लोगों के लिए भी यह वरदान साबित हुई है।
उन्होंने कहा कि अल्ट्रासाऊंड में मिले निर्देशन के मुताबिक नसों को पंक्चर करने तथा उसमें आई परेशानी को जलाकर खत्म करने की इस विधि ने मरीज को जल्दी तंदरूस्त होने का मौका दिया है। उन्होंने बताया कि यह विधि दर्द रहित व सुरक्षित है। उन्होंने बताया कि इसके तहत होने वाले आप्रेशन का कोई निशान बाकी नहीं रहता, क्योंकि इस तहत न कोई कट लगाना पड़ता है तथा न ही टांके। उन्होंने कहा कि इसके साथ शरीर के टिशूज का भी कम नुकसान होता है और यह उन लोगों के लिए ज्यादा लाभकारी है, जिनका खून पतला है। इसके अलावा शुगर के मरीज के साथ-साथ खून में इंफेक्शन रखने वाले अथवा आप्रेशन से डरने वाले लोगों के लिए भी यह वरदान साबित हुई है।
उन्होंने कहा कि नसों के फूलने व सूजन की बीमारी को नजरअंदाज करना हानिकारक साबित हो सकता है। इसलिए इस तरह के लक्ष्ण नजर आने पर इसका तुरंत उपचार कराना चाहिए। उन्होंने बताया कि इस नई ग्लू क्लोजऱ तकनीक में पेटेंटिड वेनाब्लॉक केथेटर का इस्तेमाल होता है जो वीनस रीफ्लक्स डिजीज के उपचार के लिए अपेक्षाकृत नई एंडोवैस्क्यूलर तकनीक है। नई मोका तकनीक में भी कैथेटर का इस्तेमाल होता है और नस का उपचार बारीक ब्लेड्स और फोम सेक्लेरोथैरेपी से होता है। उन्होंने बताया कि वैरीकॉस वेन्स की समस्या शरीर के किसी भी हिस्से में हो सकती है लेकिन ज्यादातर मामलों में जांघों या फिर पिंडलियों में ये बीमारी देखी गई है। इसमें खुजली होती है फिर असहनीय दर्द महसूस होता है। इसे लगातार खुजलाने से अल्सर का भी डर हो जाता है। वैरीकॉस वेन्स की वजह से शरीर में रक्त संचार संबंधी समस्या भी पैदा हो सकती है। इस बीमारी में हालांकि जटिलता कम होती है और इसे काफी हद तक समाप्त किया जा सकता है।
डा. जिंदल मोका तकनीक में माहिर हैं और उन्हें भारत में इस तकनीक को सबसे पहले लाने का श्रेय जाता है। वो कहते हैं, ‘फोर्टिस मोहाली में हम मरीजों के उपचार के लिए अत्याधुनिक तकनीक के इस्तेमाल में विश्वास रखते हैं। हम वैरिकोस वेन्स का उपचार लेजर, रेडियो फ्रीक्वेंसी और फोम स्क्लेरोथेरेपी के जरीए करते आए हैं। ग्लू तकनीक में हमें नसों में अल्ट्रासाउंड की मदद से छेद करना होता है। इसमें एक खास तरह की टर्किश ग्लू का इस्तेमाल किया जाता है। ये सुरक्षित और दर्दरहित है। मरीज़ उसी दिन घर जा सकते हैं। पहले मरीज को हस्पताल में भर्ती होना पड़ता था।
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