Thursday, May 9, 2019

प्राचीन कला केन्द्र और अंबाला की सांगीतिक संस्था द्वारा कत्थक नृत्य नाटिका शकुन्तला का आयोजन: संस्कृतिशकुन्तला की खूबसूरती प्रस्तुति से दर्शक मंत्रमुग्ध


By Samachar Digital News
Chandigarh 09th May:- चण्डीगढ़ की जानी मानी सांस्कृतिक संस्था प्राचीन कला केन्द्र और अंबाला की सांगीतिक संस्था संस्कृति के आपसी सहयोग से कत्थक नृत्य नाटिका शकुन्तला का आयोजन टैगोर थियेटर में किया गया जिसमें संस्कृति की निदेशक एवं कत्थक नृत्यांगना शबनम नाथ द्वारा कत्थक नृत्य पेश किया गया ।शबनम के निर्देशन में उनके समूह ने खूबसूरत प्रस्तुतियां पेश की इस अवसर पर NZCC के निदेशक प्रोफैसर सौभाग्य वर्धन ने बतौर मुख्य अतिथि शिरकत की इनके साथ-साथ चीफ जस्टिस श्री एस.एस.सोढी तथा IGP चारू बाली भी बतौर विशेष मेहमान उपस्थित थे पारम्परिक द्वीप प्रज्वलन की रस्म के बाद कार्यक्रम की शुरूआत की गई  
कार्यक्रम में लगभग 50 छोटे बड़े कलाकारों ने भाग लिया संस्कृति भारतीय शास्त्रीय कलाओं को समर्पित संस्था है लेकिन यहां कत्थक नृत्य पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है क्योंकि कत्थक नृत्य शैली सभी शास्त्रीय नृत्यों में से सबसे अधिक स्वभाविक नृत्य है ।। संस्कृति प्राचीन कला केन्द्र का अधिकृत सेंटर भी है शबनम एक निदेशक होने के नाते 2004 से इस संस्था को नई उचाईयों पर ले जाने को निरंतर प्रयत्नशील है
आज के कार्यक्रम शकुन्तला कालीदास की शकुन्तला अभिज्ञान पर आधारित नृत्य रचना है इस नृत्य नाटिका का निर्देशन,अवधारणा एवं नृत्य निर्देशन शबनम नाथ द्वारा किया गया ।इस नाटिका की शुरूआत ऋषि विश्वामित्र एवं स्वर्ग की अप्सरा मेनका से होती है जिसमें देवराज इंद्र द्वारा भेजी गई अपस्रा मेनका तपस्यारत विश्वामित्र की तपस्या भंग कर देती है और उनके प्रेम स्वरूप शकुन्तला का जन्म होता है जिसे मेनका जन्म देते ही त्याग देती है और जंगल में कण्व ऋषि उसके लालन पालन करते हैं। एक दिन राजा दुष्यंत जंगल में शिकार के लिए आते हैं और शकुन्तला की सुंदरता पर मोहित जाते हैं और उससे गंर्धव विवाह कर लेते हैं। इसके पश्चात राजा दुष्यंत वहां से उसको राजधानी में बुलाने का वचन देकर वापिस लौट जाते हैं उपरांत शकुन्तला गर्भवती हो जाती है परंतु जब वह राज दुष्यंत के दरबार में पहुंचती है तो दुर्वासा ऋषि के श्राप के कारण उसको पहचानने से इंकार कर देते हैं उधर दुखी शकुन्तला एक पुत्र को जन्म देती है उधर राजा दुष्यंत को मछुआरे द्वारा भेंट की गई अंगूठी देखकर शकुन्तला की याद जाती है और वो शकुन्तला को ढूंढने निकल पड़ते हैं और सम्मान सहित शकुन्तला को राजमहल में ले आते हैं जहां अपने पुत्र एवं पत्नी सहित सुखी जीवन व्यतीत करते हैं प्रेम,विछोह,पुर्नमिलन के अनेकों रंग लिए इस नृत्य नाटिका में भावों का प्रदर्शन सराहनीय था
कार्यक्रम के अंत में मुख्य अतिथि एवं केन्द्र की रजिस्ट्ार डा.शोभा कौसर ने कलाकारों को सम्मानित किया इस अवसर पर केन्द्र के सचिव श्री सजल कौसर ने कलाकारों और दर्शकों का धन्यवाद किया

No comments:

Post a Comment